शीतला माता मंदिर ( Sheetla Mata Temple )

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शीतला माता मंदिर

शीतला माता मंदिर जयपुर राजस्थान – 500 साल पुराना है मंदिर

Sheetla Mata Temple Jaipur Rajasthan – 500 years old temple

शीतला माता का मंदिर जयपुर, Sheetla Mata Temple Jaipur

माता का यह मंदिर जयपुर के दक्षिण दिशा मे लगभग 70 किलोमीटर किस दूरी पर है।


चाकसू मे स्थित शीतला माता का मंदिर, Shitala Mata Temple located in Chaksu

माता का यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना हुआ है जो की दूर से ही दिखाई देता है, यहाँ पूरे वर्ष भर भक्त माता के दर्शन के लिए आते है । ओर माता रानी का आशीर्वाद पाते है ।



शीतला माता का मेला, Sheetla Mata Fair

शीतला माता का मेला एक महत्वपूर्ण है जो की अपनी अलग ही विशेस्ता रखता है ।इस मेले मे धार्मिक आस्था ओर सांस्कृतिक परमपराये भी देखने को मिलती है । माता का यह मेला चेत्र मास मे सप्तमी ओर अष्टमी ( बसयोडा ) के दिन आयोजित होता है ।
 
मंदिर तक पहुचने के लिए तीन सो मीटर की चड़ाई करनी पड़ती है ।
To reach the temple one has to take three sleeping meters
यह चड़ाई करने के बाद भक्तो को माता रानी के दर्शन होते है।


शीतला माता को बासे भोजन का लगता है भोग, Mother of Shitala feels enjoyment of stale food

इस माता को ठंडे भोजन का भोग लगाया जाता है, मुख्य रूप से यहाँ भक्त राबड़ी, पुए ओर रोटी का ही भोग लगाए है । ओर मे माता के भोग लगाने के बाद ही उस भोजन को खुद खाते है । निरोग व सुख – सान्ती के लिए माता के भक्त यहाँ पर धान का भी दान करते है ।

शीतला माता के मंदिर मे बच्चो को लगवाई जाती है धोक

Children are beaten in the temple of Sheetla Mata

माता के इस मंदिर मे बच्चो के धोक लगवाई जाती है ।बच्चो मे माता निकलने या चेचक बीमारी होने पर माता के मंदिर मे धोक लगवाने की परंपरा सदियो से चली आ रही है ।



500 साल पुराना है माता का यह मंदिर, This temple of Mother is 500 years old

शील की डूंगरी मे स्थित माता का यह मंदिर 500 साल पुराना है,यहाँ मंदिर से जुड़ी बहुत सी कथाये भी प्रचलित है । जिनमे से जुड़े चमत्कारो का पता लगता है ।

इस मंदिर की पहाड़ी के हर पत्थर को पुजा जाता है

Every stone in the hill of this temple is worshiped

शील की डूंगरी मे बने इस माता के मंदिर की पहाड़ी के हर पत्थर को लोगो  द्वारा मूर्ति के रूप मे पुजा जाता है । इसलिए यहाँ से माता के भक्त यहाँ के पत्थरो को अपने घर लेजाकर पूजते है । ओर इन पत्थरो को माता की मूर्ति या माता का ही रूप माता जाता है ।





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